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जंग-ए-आजादी यादगार मामले को लेकर बरजिंदर सिंह हमदर्द ने किया हाईकोर्ट का रूख, आज होगी सुनवाई

जालंधर: जंग-ए-आजादी स्मारक मामले से जुड़ी एफआईआर को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। विजिलेंस द्वारा डाॅ. बरजिंदर सिंह हमदर्द समेत 26 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी और इसमें विजिलेंस पर निर्माणाधीन सरकारी फंड में धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया गया था। सूत्रों के अनुसार बरजिंदर सिंह हमदर्द ने इस एफआईआर को चुनौती दी है। एफआईआर के खिलाफ अजीत के प्रबंध निदेशक बरजिंदर सिंह हमदर्द ने याचिका दायर की है। 28 मई को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। याचिका में इस एफआईआर को खारिज करने की अपील की गई है और साथ ही इस एफआईआर को निराधार बताया गया है। कहा गया है कि इस संबंध में कोई केस नहीं बनता है। अगर इसकी जांच करनी है तो किसी तीसरे पक्ष या एजेंसी से कराई जाए ताकि निष्पक्ष जांच हो सके।

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पंजाब में हथियारों और हिंसा वाले गीतों को लेकर होगी कार्रवाई, हाईकोर्ट ने अपनाया कड़ा रुख; दिए ये आदेश

चंडीगढ़: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब में गानों में हथियारों और हिंसा का महिमामंडन करने पर कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने सरकार से ऐसे गानों की सूची देने को कहा, जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। जस्टिस हरकेश मनुजा ने मौखिक रूप से पूछा, इन गानों के खिलाफ कितनी एफआईआर दर्ज की गई। इन गानों की सूची बनाकर शाम तक मुझे दें, जिससे भारत संघ को इसमें शामिल किया जा सके और जरूरी कार्रवाई की जा सके। कोर्ट ने राज्य के वकील से यह भी पूछा कि हथियारों का महिमामंडन करने वाले गानों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, जिस पर राज्य के वकील ने कहा कि उनके पास इस पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है। यह घटनाक्रम तब सामने आया, जब न्यायालय ने पंजाब सरकार से हथियारों और हिंसा के महिमामंडन को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंधित किए गए या प्रतिबंधित किए जाने की सिफारिश किए गए गीतों के विवरण पर व्यापक हलफनामा मांगा। इसने सार्वजनिक समारोहों में आग्नेयास्त्रों के व्यापक उपयोग और पंजाब में अपराध करने के लिए लाइसेंसी बंदूकों के इस्तेमाल पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी। कहा था कि प्रतिबंध के बावजूद कोई स्पष्ट बदलाव नहीं हुआ। पंजाब सरकार ने 2022 में सार्वजनिक स्थानों और सोशल मीडिया पर आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल और प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया था। तदनुसार, अधिकारियों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में औचक निरीक्षण करने का निर्देश दिया था। इससे पहले न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक (DGP) को हथियार लाइसेंस जारी करने के दिशा-निर्देशों और राज्य के आदेश को लागू करने के लिए की गई कार्रवाई के विवरण से संबंधित अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। हालांकि न्यायालय ने पाया कि राज्य व्यापक हलफनामा दाखिल करने में विफल रहा। नतीजतन न्यायाधीश ने DGP पंजाब को राज्य में हथियारों के महिमामंडन को रोकने के लिए की गई कार्रवाई के संबंध में विभिन्न विवरणों पर एक व्यापक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

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जेल में बंद विदेशी कैदियों को वीडियो कॉल करने की सुविधा दें सरकारें, हाईकोर्ट का आदेश

चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जेल में बंद विदेशी कैदियों को लेकर हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ तीनों को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने महीने में एक बार उनके परिजनों से कॉल या वीडियो कॉल की सुविधा को लेकर 2 मई तक नीति बनाने पर जवाब दाखिल करने का आदेश भी दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि विदेशी लोग जो जेल में हैं, उनके भी मानवाधिकार हैं। उन्हें भी उनके परिजनों से संपर्क करने का अधिकार है। फोन कॉल या वीडियो कॉल के माध्यम से वे अपने परिजनों से बात कर सकें। ऐसे में इस प्रकार की व्यवस्था की जरूरत है कि कम से कम महीने में एक बार उनको इसका अवसर दिया जाए। हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधावालिया बीते दिनों लुधियाना सेंट्रल जेल के दौरे पर थे। इस दौरान उन्हें वहां एक केन्या का नागरिक मिला, उसने बताया कि वह गिरफ्तारी के बाद अब तक अपने परिजनों से बात नहीं कर पाया है। जस्टिस संधावालिया ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका के तौर पर सुनने का निर्णय लिया।

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पति पर अत्याचार के बराबर है पत्नी का बार-बार मायके जाना, हाईकोर्ट ने पुरुषों को दिया बड़ा अधिकार।

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि एक महिला का अपने पति की गलती के बिना बार-बार वैवाहिक घर को छोड़कर जाना मानसिक क्रूरता है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने कहा कि विवाह आपसी साथ, समर्पण और निष्ठा से फलने-फूलने वाला रिश्ता है। दूरी और परित्याग इस बंधन को सुधार की गुंजाइश से परे तक तोड़ देता है। कोर्ट की यह टिप्पणी एक अलग रह रहे जोड़े को क्रूरता और पत्नी द्वारा छोड़े जाने के आधार पर तलाक देते समय आई। तलाक की मांग करते हुए व्यक्ति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी असहिष्णु और अस्थिर स्वभाव की है और वह कम से कम सात बार उसे छोड़कर जा चुकी है। तलाक देने से इनकार करने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए इस व्यक्ति ने अपील दायर की थी। इसे मंजूर करते हुए कोर्ट ने कहा कि लगभग 19 सालों की अवधि के दौरान अलगाव की सात कोशिशें हुईं और हर बार तीन से 10 महीने का समय लगा। कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक अलग रहने से वैवाहिक बंधन में अपूरणीय क्षति हो सकती है, जो मानसिक क्रूरता है। सहवास और वैवाहिक संबंधों को खत्म करना या उससे वंचित करना भी अत्यधिक क्रूरता का काम है। बेंच ने कहा, यह अपीलकर्ता को जहनी तौर पर परेशान करने का मामला है। जिससे वह तलाक पाने का हकदार है।

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